#कशमकश #ऐहसासकीस्याहीभाग2
चार दिन की ज़िंदगी है,
पर अरमान बहुत हैं,
हमदर्द नहीं कोई,
हाँ अपना कहने वाले,
इंसान बहुत हैं,
दिल के दर्द भला किसे सुनायें,
जो दिल के करीब है,
वो अनजान बहुत है।
मंजिल की खोज में,
अभी चलना बहुत है,
रोशनी मिलती नही,
सूरज चमकता बहुत है,
दिल के दर्द भला किसे सुनायें,
जो दिल के करीब है,
वो अनजान बहुत है।
खुद की परछाई,
साथ छोड़ देती है,
हाँ इस रात में,
अंधकार बहुत है,
दिल के दर्द भला किसे सुनायें,
जो दिल के करीब है,
वो अनजान बहुत है।
ऐसा लगता है अक्सर,
मैं अकेला सा हूँ,
हर शख्स खुद मे परेशान,
दिखता बहुत है,
दिल के दर्द भला किसे सुनायें,
जो दिल के करीब है,
वो अनजान बहुत है।
कैसे छोड़ दूँ ये उलझने,
शिवा के हवाले,
हाँ!उसके सिर पर भी तो,
मामलात बहुत है,
दिल के दर्द भला किसे सुनायें,
जो दिल के करीब है,
वो अनजान बहुत है।
#कलमसत्यकी ✍️
कृत:
सत्येंद्र उर्मिला शर्मा
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