पालीथीन उपयोग तथा कैंसर

#कलमसत्यकी ✍️
लापरवाह क्यूँ हैं हम...... 
क्या हम खतरों के खिलाड़ी हैं? 
अरे भाई कैंसर का सामान तो हम अपने साथ लेकर चलते हैं!!
ये बात सच है की आज सरकार के साथ साथ जनता  द्वारा एक बड़ी राशि कैंसर इलाज मे खर्च हो रही है। 
लोगों के जमीन जायदाद नीलाम हो जा रहे हैं। 
अच्छा खा-पी रहे हैं,साफ सुंदर जगह पर रह रहे हैं फिर भी कैंसर कैसे हो गया।
दोस्तों ये बात तब आश्चर्यचकित करती है जब एक स्वस्थ दिखने वाले इंसान को पता चलता है की उसे कैंसर हो गया है। 
दरअसल वर्तमान में जिस तरह से कैंसर नामक बीमारी तेजी से पाँव पसार रही है उससे  तो यह सवाल सहसा खड़ा हो जाता है ।
शरीर में कोशिकाओं के समूह की अनियंत्रित वृद्धि कैंसर है।जब ये कोशिकाएं टिश्यू को प्रभावित करती हैं तो कैंसर शरीर के अन्य हिस्सों में फैल जाता है।
कैंसर किसी भी उम्र में हो सकता है।
लेकिन यदि कैंसर का सही समय पर पता ना लगाया गया और उसका उपचार ना ह तो इससे मौत का जोखिम बढ़ सकता है।
दो दशक पहले कैंसर को बड़े शहरों की बीमारी कहा जाता था लेकिन अब ये बीमारी छोटे शहरों से होते हुये गाँवों में तेजी से पैर पसार रही है। 
इतनी गति से कैंसर फैलने का जो मुख्य और छुपा  हुआ कारण है वो है पॉलिथीन का अंधाधुंध उपयोग और ये शोध तथा आंकड़े चीख चीख कर कह रहे हैं। 
इंसानी जीवन में पॉलिथीन का प्रयोग इस कदर बढ़ा रहा है की कैंसर तथा अन्य लाइलाज रोगों मे अत्यधिक वृद्धि हुयी है और गंभीर बात तो ये है की लोग इसपर जरा सा भी सक्रिय नहीं हैं और न ही सुनने समझने को तैयार हैं। 
 
कुछ महीने पहले मैने एक लेख मे पढ़ा था की केजीएमयू के वीसी और कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. एमएलबी भट्ट कहते हैं कि प्लास्टिक के कप,बोतल और माइक्रोवेब में प्रयोग होने वाले प्लास्टिक के बर्तन में बिस्फिनॉल ए और डाई- इथाइल हेक्सिल फैलेट केमिकल्स पाये जाते हैं। जिनका कुछ न कुछ अंश खाने के साथ जाता है और कैंसर, अल्सर व स्किन से जुड़ी गंभीर बीमारियों का कारण बनता है।
एक रिसर्च में ये भी सामने आया है कि छोटे बच्चों को दिए जाने वाले प्लास्टिक के  खिलौनों में आर्सेनिक व सीसे का इस्तेमाल ज्यादा होता है।मुंह में डालने पर बच्चे गंभीर बीमारियां ये ग्रसित हो जा रहे हैं।
डॉ. भट्ट कहते हैं कि जिस प्रकार से हर घर में तमाम प्रकार से पॉलीथिन का यूज हो रहा है,उसका परसेंट सीधे पर्यावरण पर प्रभाव डाल रहा है। 
पानी की बोतलों से लेकर डिब्बा बंद, जूस व चाय की पैकिंग और माइक्रोवेव में प्रयोग होने वाले प्लास्टिक के बर्तन से सीधे प्लास्टिक में मौजूद टॉस्कि एलीमेंट पेट तक पहुंच रहे हैं, जो कैंसर जैसी बीमारियों को बुलावा दे रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ साल 2030 तक विश्व में कैंसर पीड़ितों की संख्या एक करोड़ से ऊपर पहुँच जायेगी।
भारत में हर वर्ष करीब 2 लाख लोग कैंसर के रोगियों में बढ़ोत्तरी होती है।
वही हर वर्ष करीब 5 लाख लोग इस बीमारी की चपेट में आकर दम तोड़ देते हैं।
दोस्तों ये तो पालीथीन की बात हुयी जो की धीरे धीरे हवा,पानी,धरती के साथ साथ हम सब के अंदर जहर घोल रही है। 
अब जागरूरता अभियान के दौरान कुछ लोग कहते हैं की सरकार क्यों कुछ नही करती? 
सरकार फैक्टरी बंद क्यों नहीं करती? 
वही बात शराब, तंम्बाकु और गुटखा के लिये होता है। 
सरकार बंद क्यों नही करती? 
दोस्तों मान लिजीये सरकारी तंत्र फेल है तो क्या आप जहर लेते रहेंगे? 
क्या आप अपने परिवार व दोस्तों को यही सलाह देंगे की तुम शराब और तंबाकु का सेवन तब तक करना जब तक दुकाने बंद न हो जायें। 
क्या आपकी संतान अगर आपको यह दलील दे कि "मैं नशा करना बंद नहीं करूंगा" पहले आप जाइए फला दुकान बंद करवाइए।
क्या आप उसकी इस दलील को मानेंगे?
आप तो उससे यही कहेंगे ना की यह शरीर हमारा है, इसकी जिम्मेदारी हमारी है।
दोस्तों उसी प्रकार से जब पॉलिथीन के इस्तेमाल की बात होगी तो हमें यह समझना होगा कि यह पर्यावरण सीधे तौर पर हमें प्रभावित करती है इसलिए "सिंगल यूज प्लास्टिक" का इस्तेमाल हमें बंद करना होगा।
रीसायकल पर ध्यान देना होगा।

जब भी हम घर से निकले तो एक "कपड़े का झोला" अपने साथ ले कर के चले इससे हम बहुत हद तक प्लास्टिक थैलियों का इस्तेमाल कम कर सकेंगे और प्लास्टिक कचरे में भारी कमी होगी।

जब वायु,पानी और धरती स्वच्छ रहेगी तो निश्चित रूप से हमारा शरीर स्वस्थ होगा।
दोस्तों इतनी बड़ी आबादी वाले देश में किसी समस्या का पूर्ण समाधान मुझे मुश्किल नजर आता है लेकिन हम जिस मोहल्ले में ,शहर में रहते हैं उसके एक छोटे से हिस्से कि अगर हम जिम्मेदारी ले ले तो निश्चित हम सफल होंगे।

दोस्तों इस छोटी सी जिंदगी में हम कुछ समय के लिए ही धरती पर आते हैं और हम इतने महान भी नहीं होते हैं की हम बड़ा परिवर्तन ला सकें।
लेकिन हम एक बड़े परिवर्तन में एक छोटी सी भूमिका जरूर प्रस्तुत कर सकते हैं।
आप सभी जानते हैं कि मकान से छोटा दरवाजा होता है और दरवाजे से छोटा ताला और ताले से छोटी चाबी होती है और उस चाबी पर पूरे मकान का दायित्व होता है।
उसी प्रकार से छोटे-छोटे विचार बड़े बदलाव ला सकते हैं ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है। 
मेरा देश मेरा दायित्व। 
वृद्धजनों की सेवा व पर्यावरण सुरक्षा 
संस्थापक 
सत्येंद्र उर्मिला शर्मा 

Post a Comment

0 Comments