#कलमसत्यकी ✍️
भ्रमित युग-लक्ष्यविहीन पीढी़
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कच्चा बादाम और पुष्पा......मै झुकेगा नही साला और न जाने क्या क्या.........!!
सोचने समझने की शक्ति मे क्षीणता.....
जिंदगी जीने का तरिका ही बदल गया साहब।
बहुतयात संख्या मे लोग सोशल प्लैटफार्म पर खुशी, टाइमपास, मस्ती, नग्नता, करियर, और न जाने क्या-क्या ढूंढते-तलाशते दिखते हैं।
नेट खत्म होते ही वानप्रस्थ आश्रम मे जाने जैसी फीलींग आती है....हाँ ऐसा कईयो ने मुझे बताया।
ये काफी चौंकाने वाला था परंतु ये सच है।
उन्होंने मुझे बताया कि वे काफी उदास महसूस कर रहे हैं उनकी जिंदगी का मकसद समाप्त हो गया है ।
उनका कोई अपना नहीं है और जैसे ही उन्हें पुन: मुफ्त डाटा मिल जाता है वह पुनः रिहाइड्रेट हो जाते हैं।
कोई लेखक,शायर,एक्टर,यूट्यूबर,आदि आदि बनने के लिये परेशान।
कुछ युवा कवि इस चक्कर में दिन भर बीड़ी सुलगाते नजर आते हैं कि लोग उन्हें जान आलिया समझे मतलब की एक जोरदार शायर समझ लें।
हाँ लोग बताते हैं कि वह मंच को ही बार बना देते थे।
कितनों ने तो उर्दू की पॉकेट डिक्शनरी भी खरीद ली है।
कभी-कभी तो मैं भी भटक जाता हूँ।
कुछ उलूल जूलूल करने का मन करता है ।
मेरे पास भी बहुत सा टैलेंट है।
सोचता हूँ शायद कोई टैलेंट हिट हो जाय तो ये नौकरी चाकरी छोड़ कर के हल्का फुल्का वाला सेलिब्रिटी बन जाऊंगा।
दरसल आजकल के बच्चों को भी यही पसंद है।
एक बच्चा था न.... जो कोई उलूल जूलूल सा गाना गाया तो मुख्यमंत्री जी उसको सम्मानित कर दिए....इनाम पैसा दे गये। कोई कार दे गया।
एक बकलोल गायक है.... मेरी नजर मे.... वैसे वो रैप बादशाह है.... उसके भी उसके साथ गाना गा लिया।
हमारे बच्चे से तो पड़ोस मे रहने वाले पार्षद भी नहीं मिलने आते।
कहता है..... पापा.... आप झूठ-मूठ में मुझे शास्त्रीय संगीत सिखा रहे हैं।पैसा बर्बाद होगा। बस आप मुझे एक पर्सनल आईफोन दे दिजीये ।
मै रील्स बनाकर वायरस हो जाउंगा ..... मतलब की वायरल! कह रहा था पापा बहुत से बेसुरे-बेसुरे गायक आज स्टार बने हुए हैं..... हाँ वायरल हो गए हैं।
इधर महीनों से स्कूल बंद...
बच्चे घर मे... सारा दिन हाथ मे मोबाइल...
युवा इस चक्कर मे परेशान हैरान की क्या करें की करियर सेट हो जाये...
उसी बीच सिनेमा हाल के बंद होने और सबके आंखो मे वेब सीरीज के माध्यम से नग्नता परोसने की होड़ और माल बनाने की ललक ।
इतना ही नही समाज को बदलने वाले समाजसेवीयों की संख्या मे बढ़त जो समाज सेवा शुरू करने से पहले ही बैंक खाता खोल लेते हैं और पेटीएम नंबर वायरल कर देते हैं ,पैसा बटोरने के हुनर से लबालब।
अपना कपड़ा किसी गरीब को कैमरे के सामने खटाक से निकालकर पहनाने का हुनर.....
साथ ही देश को विकास के रास्ते पर ले जाने के लिये आतुर भयानक संख्या मे उभरे सो काल्ड समाजसेवी नेता
मतलब की मानो देश मे क्रांति आ गयी।
डिजिटल वर्ल्ड का इस्तेमाल ऐसे विस्फोटक तरिके से हो जायेगा ये तो उसके जन्मदाता को भी आशा नही रहा होगा।
एक था कोरोनावायरस....उसके लिए तो टीका बन गया। दूसरा वायरस जो आज समाज में बहुतायत लोगों के जहन मे घुस गया है वो है सेलिब्रिटी बनने की ललक। बिना मेहनत किए नाम शोहरत पाने का वायरस।
कुछ उलूल-जूलूल करके वायरल हो जाने कि जो यह सोच रूपी वायरस हमारे समाज में व्याप्त होती जा रही है यह बहुत खतरनाक सिद्ध होने वाली है।
भौतिक सुख-सुविधाओं को हासिल करने के लिए अभिभावक दिन-रात जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं जिसके कारण अपने बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पा रहे हैं।इससे कोई भी अछूता नहीं है।
बच्चे,किशोर,युवा पीढ़ी,अधेड़ और बुजुर्ग सारा दिन सोशल मीडिया पर व्यस्त है।
मैं यह नहीं कहता कि सोशल मीडिया पर सक्रियता आवश्यक नहीं है,डिजिटल युग है, मैं स्वयं इस्तेमाल करता हूं लेकिन संक्रमित होकर नहीं.......ये एक सशक्त माध्यम है इसलिए मै भी अपने विचारों को सोशल मीडिया पर आपके सामने प्रेषित कर रहा हूँ।
उपरोक्त जो भी उदाहरण मैंने रखे या जो मैंने महसूस किया आप इसका आकलन करें यह कहां तक सही है और गलत...... क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति की परिस्थिति,दिनचर्या,आसक्ति व सोच एक समान नहीं होती।
मैं बस इतना कहना चाहता हूँ कि वर्तमान पीढ़ी को बहुत ही संवेदनशीलता से आगे बढ़ाना है, उन्हें फर्जी संक्रमण से दूर रखना है जिससे उनकी आत्मा दूषित न हो और वे चकाचौंध के वायरस से खुद को सुरक्षित रख सकें।
बस यह हमको और आपको तय करना कि हम और आप कितने संक्रमित हैं ।
सत्येंद्र उर्मिला शर्मा
मेरा देश मेरा दायित्व।
मंथन-मेरे विचार ©️
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