बुद्ध

#कलमसत्यकी ✍️
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गौतम बुद्ध (जन्म 563 ईसा पूर्व – निर्वाण 483 ईसा पूर्व)
एक श्रमण थे जिनकी शिक्षाओं पर बौद्ध धर्म का प्रचलन हुआ।
इनका जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। उनकी माँ का नाम महामाया था जो कोलीय वंश से थीं, जिनका इनके जन्म के सात दिन बाद निधन हुआ, उनका पालन महारानी की छोटी सगी बहन महाप्रजापती गौतमी ने किया।
29 वर्ष की आयुु में सिद्धार्थ विवाहोपरांत एक मात्र प्रथम नवजात शिशु राहुल और धर्मपत्नी यशोधरा को त्यागकर संसार को जरा, मरण, दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग एवं सत्य दिव्य ज्ञान की खोज में रात्रि में राजपाठ का मोह त्यागकर वन की ओर चले गए।
वर्षों की कठोर साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से भगवान बुद्ध बन गए।
सिद्धार्थ ने पहले तो केवल तिल-चावल खाकर तपस्या शुरू की, बाद में कोई भी आहार लेना बंद कर दिया। शरीर सूखकर काँटा हो गया।
छः साल बीत गए तपस्या करते हुए।
सिद्धार्थ की तपस्या सफल नहीं हुई।
शांति हेतु बुद्ध का मध्यम मार्ग : एक दिन कुछ स्त्रियाँ किसी नगर से लौटती हुई वहाँ से निकलीं, जहाँ सिद्धार्थ तपस्या कर रहा थे।
उनका एक गीत सिद्धार्थ के कान में पड़ा- ‘वीणा के तारों को ढीला मत छोड़ दो,ढीला छोड़ देने से उनका सुरीला स्वर नहीं निकलेगा,पर तारों को इतना कसो भी मत कि वे टूट जाएँ।
बात सिद्धार्थ को जँच गई।
वह मान गये कि नियमित आहार-विहार से ही योग सिद्ध होता है,अति किसी बात की अच्छी नहीं।
किसी भी प्राप्ति के लिए मध्यम मार्ग ही ठीक होता है ओर इसके लिए कठोर तपस्या करनी पड़ती है।
भगवान बुद्ध ने लोगों को मध्यम मार्ग का उपदेश किया। उन्होंने दुःख, उसके कारण और निवारण के लिए अष्टांगिक मार्ग सुझाया। उन्होंने अहिंसा पर बहुत जोर दिया है।
उन्होंने यज्ञ और पशु-बलि की निंदा की।

बुद्ध के उपदेशों का सार इस प्रकार है -

महात्मा बुद्ध ने सनातन धरम के कुछ संकल्पनाओं का प्रचार किया, जैसे अग्निहोत्र तथा गायत्री मन्त्र
ध्यान तथा अन्तर्दृष्टि
मध्यमार्ग का अनुसरण
चार आर्य सत्य
अष्टांग मार्ग।

अब बात यह है की जो वे कहते हैं उससे हम कितने रूबरू होते हैं। 
आज पूरा सामाजिक ढांचा जाति और धर्म के विसंगतियों से प्रेरित और प्रभावित है। 
लोग सत्य को स्वीकारना नही चाहते क्योकि जानकारी नही है। अधूरी जानकारी अभिषाप तुल्य है। 
सबकुछ कुर्सी के आस पास भटकती नजर आती है। 
सत्ता की कुर्सी..... 
अब सत्ता की कुर्सी पाने के लिए विचारों को,विषयों को बदल दिया जाता है, संक्रमित कर दिया जाता है और हम उसी संक्रमण से प्रभावित होकर के नए समाज का निर्माण करते हैं जो कहीं न कहीं भयावह है,हानिकारक हैे। 
देश को सकारात्मकता के साथ नई दिशा में ले जाने की जिम्मेदारी जीन लोगों को दिया जाता है, या सौंपा जाता है, वह लोग सिर्फ सत्ता मे मदांध हो करके समाज को डुबाने का काम कर रहे हैं।
हमारे सनातन धर्म में कहीं भी जाति व्यवस्था की विसंगतियों का स्थान नहीं है परंतु कम्युनिस्ट लेखकों की वजह से आज भारत के टुकड़े टुकड़े होते जा रहे हैं जिसका गवाह इतिहास भी है और वर्तमान में भी होने के कगार पर है।
यह बात बिल्कुल सत्य है की कलम के जो पुजारी है वह कलम के सौदागर बनते जा रहे हैं ।
बाजार से ऊपर आज बाजारवाद होता जा रहा है जिसके कारण आज भारत की दुर्दशा साफ दिखाई पड़ रही है।
आज भारत की बात करने वाले लोगों में कमी आ रही है और सत्ता की मलाई खाने वाले लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही है।
सत्ता की मलाई खाने वाले लोगों को सिर्फ मलाई दिख रही है।
उन्हें देश और समाज के उत्थान से कोई लेना देना नहीं है।
जिसके वजह से आज हम जैसे लेखकों को इस प्रकार के लेख को लिखना पड़ रहा है कि शायद कुछ लोग जागृत हो सके और राष्ट्र के प्रति अपनी संवेदना को पुष्पित व पल्लवित कर सकें।
इस बात से नकारा नहीं जा सकता कि हजारों वर्षों के विदेशी आक्रांताओं की वजह से हमारी संस्कृति कहीं न कहीं दूषित हुई है और बिखरी हुई नजर आती है। 
इसका सबसे मुख्य कारण है कि हम अपने सनातन सभ्यता को न पड़े हैं और नहीं पढ़ने की हमारे अंदर लालसा है ।
अगर हम अपने वेदों को, अपने सनातन संस्कृति के आचार विचारों को पढें तो हमें यह मालूम पड़ेगा कि हमारे सनातन संस्कृति में किस प्रकार से जीवन जीने की कला को प्रेषित किया गया है।
राजनीतिक सत्ता से लोभित लोगों से प्रभावित होने के बजाय राष्ट्र के प्रति  समर्पण का समय आ चुका है।
मैं आप सभी लोगों से निवेदन करता हूं कि राष्ट्र के प्रति अपने विचार को पुष्पित करने का कार्य करें तथा देखने के बजाय सनातन सभ्यता से समर्पित पुस्तकों को पढ़ने का काम करें ।
गौतम बुद्ध के विषय में सुने नहीं, उनके विषय में जानने के लिए, पढ़ने का कार्य करें। 
उन्होंने कभी भी राष्ट्र को विखंडित करने का प्रवचन नहीं दिया।
बहुत-बहुत धन्यवाद।
#कलम

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