कलमसत्यकी
मशीनी दुनिया में , इंसान नहीं मिलते
पैसो के खेल में , मुस्कान नहीं चलते !!
भाव बढ़ गया सोने का ,
भावनाओ का मोल नहीं ,
हीरे मोती के रिश्तेदारी में ,
लहू का कोई मोल नहीं !!
सड़ रही मानवता ,
देखो कूडेदानो में,
क्या जाने कैसा भेद है ,
अब तो घरो के चौखट पर ,
इंसानियत का प्रवेश निषेद्य है !!
रचनाकार :
सत्येंद्र (सत्य )
मशीनी दुनिया में , इंसान नहीं मिलते
पैसो के खेल में , मुस्कान नहीं चलते !!
भाव बढ़ गया सोने का ,
भावनाओ का मोल नहीं ,
हीरे मोती के रिश्तेदारी में ,
लहू का कोई मोल नहीं !!
सड़ रही मानवता ,
देखो कूडेदानो में,
क्या जाने कैसा भेद है ,
अब तो घरो के चौखट पर ,
इंसानियत का प्रवेश निषेद्य है !!
रचनाकार :
सत्येंद्र (सत्य )
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