घने बादलों को चीर कर

घने बादलों को चीर कर 

घने बादलों को चीर कर,
चल रहा हूँ लेकर ,बरसों से मन मे,
सपनों का अम्बार,
कहता है सुन ओ सत्य!
घनों बादलों के पीछे ,दूर !!
तेरा सूरज है उस पार।।

वर्ष बीते ,मौसम बदला,
न बदला मन का मिजाज,
मेरे मन की आशायें न बदली,
न ही बदला ये अद्भुत समाज।

दृढ़ ईच्छाशक्ति होगी फलीभूत,
है मन को ये विश्वास,
फूटती हुई सूरज की किरणें,
अब आने लगी है मेरे पास,
घने बादलो को चीर कर।।
हाँ घने बादलों को चीर कर ।।

सत्येन्द्र (सत्य)

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