#कलमसत्यकी ✍️
क्या रोटी मे स्वाद होता है?
मुझे तो नही लगता!
वो तो भूख की कसौटी पर कसे जाने पर उसकी महत्ता समझ आती है।ऐसा मेरा मानना है।
किसी महल के रसोईं का खजाना हो या किसी के घर का कचरा हो ,पर उसमे से निकले रोटी के टुकड़े की पात्रता रखने वाला जीव उस टुकड़े के महत्व को समझता है।
फिर चाहे वो इंसान हो या कोई पशु।
और एक कहानी भी तो मेरी माँ ने सुनाया था जो मेरी इस कथन को सिद्ध करता है।
एक भूखा भटकता हुआ जब एक ऋषि की झोपड़ी में पहुंचा तो खाने को उसे उबले हुए आलू मिले ।
10 मिनट तक बिना रुके वह व्यक्ति आलू खाता रहा, उसके बाद उसने कहा, थोड़ा नमक मिलेगा और तभी उन साधु ने बचे हुए आलू वापस ले लिये और कहा, तुम्हारा पेट भर चुका है।
तो स्वाद आलू मे नहीं, महिमा भूख की ही होती है!
पर आज के युग मे भूख भी व्यापार बनता जा रहा है।
इसलिये जीवन में स्वांग बहुत हद तक घर कर गया है।
शायद ,स्वांग ही जीवन और जीवन ही स्वांग है।
मै भी तो मानव ही हूँ। हां मेरी मानवता जीवित रहे।
और क्या कहूँ।
आखिर ये पुरूवंशी नरेश शिबि की धरती है।
इसलिये भूखे को भोजन अवश्य करायें।
जरूर।
कृत: सत्येंद्र सत्य।
मुझे तो नही लगता!
वो तो भूख की कसौटी पर कसे जाने पर उसकी महत्ता समझ आती है।ऐसा मेरा मानना है।
किसी महल के रसोईं का खजाना हो या किसी के घर का कचरा हो ,पर उसमे से निकले रोटी के टुकड़े की पात्रता रखने वाला जीव उस टुकड़े के महत्व को समझता है।
फिर चाहे वो इंसान हो या कोई पशु।
और एक कहानी भी तो मेरी माँ ने सुनाया था जो मेरी इस कथन को सिद्ध करता है।
एक भूखा भटकता हुआ जब एक ऋषि की झोपड़ी में पहुंचा तो खाने को उसे उबले हुए आलू मिले ।
10 मिनट तक बिना रुके वह व्यक्ति आलू खाता रहा, उसके बाद उसने कहा, थोड़ा नमक मिलेगा और तभी उन साधु ने बचे हुए आलू वापस ले लिये और कहा, तुम्हारा पेट भर चुका है।
तो स्वाद आलू मे नहीं, महिमा भूख की ही होती है!
पर आज के युग मे भूख भी व्यापार बनता जा रहा है।
इसलिये जीवन में स्वांग बहुत हद तक घर कर गया है।
शायद ,स्वांग ही जीवन और जीवन ही स्वांग है।
मै भी तो मानव ही हूँ। हां मेरी मानवता जीवित रहे।
और क्या कहूँ।
आखिर ये पुरूवंशी नरेश शिबि की धरती है।
इसलिये भूखे को भोजन अवश्य करायें।
जरूर।
कृत: सत्येंद्र सत्य।
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