रक्षाबंधन की प्रासंगिकता

#कलमसत्यकी ✍️
एक बहन अपने भाई के कलाई पर राखी बांध कर लम्बी आयु की प्रार्थना करती है।
भाई उस बहन को आजीवन रक्षा का वचन देता है। 
रक्षा बंधन को सिर्फ एक रेशम का धागा न समझे दोस्तों। ये एक बहन और भाई के बीच विश्वास की एक मजबूत डोरी है।
ये डोर हर भाई को उसके बहन के प्रति उसके दायित्व की ओर खींचती है।
हमारे हिन्दू समाज में ऐसी कई परंपराएँ हैं, जो सदियों से चली आ रही हैं। उन्हें समाज आज भी मानता है। यही परंपराएँ हमारी संस्कृति भी कहलाती हैं।
आज समझ मे आ रहा है कि ये परंपराएँ कितनी  प्रासंगिक है।
कितना जरूरी है ये पर्व इस सभ्य कहे जाने वाले अजीब समाज में। 
आप समझ रहे होंगे मै समाज के किस गंभीर समस्या की ओर इशारा कर रहा हूँ। 
रेशम का ये धागा हर पल ये याद दिलाता है की हम सबकी  एक जिम्मेदारी है और वो जिम्मेदारी हमें एक सभ्य नागरिक तो बनाता ही है साथ ही इस आत्मिक रिश्ते के महात्म को भी समझाता है। 
मध्ययुगीन भारत में हमलावरों की वजह से महिलाओं की रक्षा हेतु भी रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता था।
यह एक धर्म-बंधन था।
तभी से महिलाएँ सगे भाइयों के साथ साथ मुँह बोले भाइयों को रक्षासूत्र बाँधने लगीं।
समझिये ये विश्वास का बंधन है। 
आज बहनें दूर भी हो, रक्षाबंधन का धागा  न भी मिल पाये या वो ना भेज पाये तो कोई बात नही। 
हमें अपने अंदर इस परंपरा और उसके द्वारा प्रस्तुत भाव तथा महात्म को जीवंत रखना है जिससे समाज मे प्रेम पल्लवित हो। 
बहनों का विशेष स्थान तथा अधिकार है और वो इसलिये की वो माँ से कम हमारे लिये चिंता नही करती। 
रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ। 
सत्येंद्र शर्मा

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