#SayNoToPolythene
#कब #जागेंगे #हम?
पृथ्वी तल पर जमा पॉलिथीन जमीन का जल सोखने की क्षमता खत्म कर रही है।
इससे भूजल स्तर गिर रहा है।
सुविधा के लिये बनाई गई पॉलिथीन आज सबसे बड़ी असुविधा का करण बन गई है।
प्राकृतिक तरीके से नष्ट न होने के कारण यह धरती की उर्वरक क्षमता को धीरे-धीरे समाप्त कर रही है।
देश हमारा है तो कुछ दायित्व हम सबका बनता है।
हम हर बात में ये नही कह सकते की सरकार बंद क्यों नही कर देती?
मै कहता हूँ, हम इस्तेमाल करना क्यो नहीं बंद कर देते?
बनाने वाले खुद ही बनाना बंद कर देंगे।
यही बात गुटखा,सिगरेट और शराब पर भी लागू होता है।
दोस्तों, पॉलिथीन और प्लास्टिक गाँव से लेकर शहर तक लोगों की सेहत बिगाड़ रहे हैं।
शहर का ड्रेनेज सिस्टम अक्सर पॉलिथीन से भरा मिलता है।
इसके चलते नालियाँ और नाले जाम हो जाते हैं।
प्लास्टिक के गिलासों में चाय या फिर गर्म दूध का सेवन करने से उसका केमिकल लोगों के पेट में चला जाता है। इससे डायरिया के साथ ही कैंसर,अल्सर तथा अन्य गम्भीर बीमारियाँ होती हैं।
पॉलिथीन का बढ़ता हुआ उपयोग न केवल वर्तमान के लिये बल्कि भविष्य के लिये भी खतरनाक होता जा रहा है।
पॉलिथीन पूरे देश की गम्भीर समस्या है।
पहले जब खरीदारी करने जाते थे तो कपड़े का झोला साथ लेकर जाते थे,किन्तु आज खाली हाथ जाकर
दुकानदार से पॉलिथीन माँगकर सामान लाते हैं।
दूध या पनीर के लिये हम स्टील के डिब्बे यूज कर सकते हैं।
पहले अखबार के लिफाफे होते थे किन्तु उसके स्थान पर आज पॉलिथीन का उपयोग किया जा रहा है।
अखबार के थैले एक बेहतर विकल्पों मे से एक है।
क्योकि अखबार तो छपने ही है तो ठोंगे का विकल्प अच्छा है।
पुराने पैंट के बने कपड़े भी बेहतर विकल्प है। नये कपड़े के झोले से बेहतर क्योकि उसमे पुरानी चीज को यूज किया जा रहा है।
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