#कलमसत्यकी ✍️
मै कौन हूँ?
क्या ये मैं जानता हूँ या फिर जो लोगों को अच्छा लगता है वही मैं दिखा देता हूँ।
जो सभ्यता के मापदंड के अनुकूल है वही तो नही हम दिखा देते हैं क्योंकि ऐसा करने से हमे लोग बहुत ही बेहतरीन व्यक्ति समझने लगते हैं और हमारी प्रशंसा करने लगते हैं, हमे वाहवाही मिलने लगती है।
हम लोग अपने अंदर के आत्मा की वृति को अक्सर सार्वजनिक जीवन मे छुपा देते हैं अगर वह अशुद्ध है, शुद्ध और सात्विक है तो सार्वजनिक जीवन से बैराग भी होने की संभावनाएं बनी रहती है।
परंतु ये आसान नही होता है सार्वजनिक जीवन को कैसे कम किया जा सकता है इसपर अक्सर मै खुद चिंतन करता हूँ, हालांकि व्यक्ति अभ्यास से ही निखरता है।बिना सत्कर्म, योग और ध्यान के मन की शुद्धि संभव नहीं!
दूसरी बात ये है कि ये तो हम ही बता सकते हैं की हमारी असल निष्ठा किस कार्य को करने मे है क्योकि जब हम अकेले होते हैं तो हम वही करते हैं जिसमे हमारा मन सना हुयी होता है और चित बसा हुआ होता है।
दरअसल गंभीर बात ये है कि जब हम अपने असल को छुपा कर एक मुखौटा लगा लेते हैं तो बदलने की गुंजाइश लगभग समाप्त हो जाती है।फिर दिन बीतता चला जाता है और हम ये मान लेते हैं की हम ही महान है।
आज ये कलम इस बात पर चली की समस्यायें समाप्त क्यों नहीं हो रही?
कुकृत्य,हर हाल मे धनार्जन और अपराध के प्रति लोगों मे इतना आकर्षण क्यों?
क्या हम आत्मा और शरीर के बीच के तादात्मय को मिटाते जा रहे हैं और भौतिकता के तराजु से ही हर चीज को तौल रहे हैं चाहे वो परिवार हो, रिश्ते हों, समाज हो और देश हो या देश के प्रति अपनी दायित्व।
धन्यवाद। 🙏
लेखनी।सत्येंद्र उर्मिला शर्मा।
संग्रह।। मंथन - मेरी बात।।
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