140 करोड़ लोगों की पहचान है भारत (कलमसत्यकी)

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प्रत्येक राष्ट्र और समाज का भविष्य उसके  नागरिकों पर निर्भर रहता हैं।
राष्ट्र के निर्माण व उत्थान के लिए भौतिक समृद्धि के साथ साथ वैचारिक, शैक्षिक, बौद्धिक एवं नैतिक चिंतन का होना भी उतना ही जरुरी हैं.
अगर हम वर्तमान स्थिति की बात करें तो देखते हैं की  शासन व्यवस्था के अधीन अधिकारों को प्राप्त करने की बात तो सभी करते हैं, चाहत रखते हैं परन्तु कर्तव्य बोध और नैतिक दायित्व की भावना लोगों में वैसी दिखाई नहीं देती है जितनी की असल मे होनी चाहिए।
यह बात सौ फिसदी सत्य है की हमारे सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन में नैतिकता की कमी आ गई है और यही  कारण है की हम राष्ट्र के प्रति अपने दायित्वों को भूलते जा रहे हैं।
ऐसा नही सभी लोग इसी प्रकार से हैं परंतु स्थिति हैरान करने वाली है। 
आज विश्व में भारतीय लोकतंत्र को सबसे बड़ा माना जाता हैं और इसमें सामाजिक विकास की प्रक्रिया भी निरंतर चल रही हैं परन्तु आज देश में नवयुवकों में अनुशासनहीनता तथा पश्चिमी सभ्यता को ही सब कुछ मान बैठे हैं,ऐसा देखने को मिलता है यही कारण है की वे अपने अंदर वास्तविक रचनात्मक विकास की सारी संभावनाओं को समाप्त करते जा रहें हैं। 
माता-पिता भी पश्चिमी सभ्यता एवं धन कमाने की प्रवृत्ति को इस प्रकार से अपने संतानों में रोपित कर रहे हैं कि उन्हें देश या देश के प्रति अपने दायित्व का जरा सा भी बोध नहीं है और यह गंभीर विषय है।
इसी कड़ी में मै यह भी  जोड़ना चाहूंगा की जब हम देश के प्रति अपने दायित्व को नहीं समझ पाते हैं तो यह भी नहीं समझ पाते हैं की देश की मुख्य समस्यायें क्या हैं और इसका निवारण कैसे हो सकता है। 
देश से बड़ा कुछ नहीं क्योकि 140 करोड़ लोगों का मुख्य घर तो यही है, पहचान यही है और जब तक हम सांस लेते है देश से लेते ही जाते हैं।
भारत, भारत और सिर्फ भारत। 
मेरा देश मेरा दायित्व।
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