काव्य #कलमसत्यकी ✍️ जीना क्या जीवन से हार के

#कलमसत्यकी ✍️
#माँ 

जीना क्या जीवन से हार के,
नजर उठा कर के तो देखो,
आगे हैं मौसम बाहर के।

गम भी हैं मायूसी भी है, 
उदासी के गमगीन मौसम भी हैं,
पर डरना नही है,
सहमना नही है, 
दिल को प्यार करने वाला, 
हाँ दिलदार भी है। 

क्या फर्क पड़ता है ,
कोई साथ दे या ना दे,
बीच राह में कोई,
तेरा साथ छोड़ दे,
हाँ टूटना नहीं है,
झुकना नहीं है,
आगे जीत का इंतजार भी है।

तू ही है अर्जुन,
कर्ण भी तो तू ही है,
मौत को हराने वाला,
वर्ण भी तो तू ही है,
कोई नहीं हरा सकता तुझे,
साथ तेरे पार्थ है,
जिसे सुनने को मैं जी रहा था,
हाँ, आगे तेरे मधुर झंकार है।

लेकर चला था रश्मिरथी मैं,
उलझन तनहाइयां दोस्त थे,
साथ देने वाला कोई नहीं था,
सब एहसान फरामोश थे।

नाम अमर करने का जज्बा,
था हृदय के आगोश में,
सूखा पड़ा वज्र गिरे, 
किंचित नहीं भयभीत मैं,
था यकीन अपने कर्म पर,
जानता था कुछ भी हो जाए,
आने वाला समय उजियार है।

सत्य तो तिनका सा है, 
बेवजह बेकार है, 
उसका जीवन उजाला होगा,
या परम अंधियार है,
आज वह जो भी है,
इसमें कोई शक नहीं,
सत्य अकेला कुछ भी नहीं
सब माँ का आशिर्वाद और प्यार है।

जीना क्या जीवन से हार के,
नजर उठा कर देखो,
आगे हैं मौसम बाहर के।
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कृत 
सत्येंद्र उर्मिला शर्मा

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