जिस देश में,शहर में, मोहल्ले में,समाज में लोगों की सुबह की शुरूवात प्लास्टिक की थैलियों से होती हो , मतलब कि घर के लिए प्लास्टिक की थैली में कचौड़ी, सब्जी और जलेबी खरीदने से होती हो,चाय और दूध की खरीदारी के लिए होती हो, शाम को घर लौटते वक्त फिर प्लास्टिक की थैलियों में घर के लिए सब्जी खरीदने के लिए होती हो या फिर देर रात दही रबड़ी उन्ही प्लास्टिक की थैलियों में घर के लिए खरीदने के लिए उपयोग की जाती हो, क्या उस समाज को, वहां के नागरिकों को हक है कि वह सड़कों पर जब पानी लग जाय, सीवर चोक हो जाए ,तो सरकार पर उंगली उठायें?
क्या सरकार के साथ-साथ इस समस्या के लिए हम खुद भी जिम्मेदार नहीं है?
बहुत से महान लोग मिलते हैं, खासकर के जब हम लोग जागरूकता अभियान करते हैं तो वे कहते हैं कि,सरकार यह प्लास्टिक की थैलियां को बंद क्यों नहीं कर देती?सरकार बंद कर दे तो हम भी इस्तेमाल करना बंद कर देंगे।
भाइयों ,ये तो बड़ी महानतम बात है !!
यह बात मेरी बुद्धि में क्यों नहीं आयी ,सोचकर हैरान हूं,ये असल में बड़ी आसान बात है क्योंकि ऐसा कहकर हम बड़ी आसानी से अपनी जिम्मेदारी से बच जाते हैं।
अब आप ही बताइए दोस्तों सरकार क्या-क्या बंद करे? सिगरेट बंद कर दे, गुटका बंद कर दे, शराब बंद कर दे,भांग बंद कर दे, प्लास्टिक बंद कर दे,चाइना को बैन कर दे !!
मतलब सब सरकार कर दे और आप मलाई खाएंगे, हम-आप कुछ नहीं करेंगे??
छाती पीट-पीटकर हम ही लोग चिल्लाते हैं न, की नेता सब चोर हैं, हम ईमानदार हैं, तो चलिए कुछ इमानदारी हम भी दिखाएं.......
कुछ पत्रकारों को मैंने देखा कि वह खबरें छाप रहे हैं ,वीडियो बना रहे हैं , की एक ही बरसात में वाराणसी के संसदीय क्षेत्र की पोल खुल गई!!
देश के प्रधानमंत्री की पोल खुल गई!!
हां! जरूर पोल खुली है ,लेकिन सिर्फ सरकार की नहीं,
हमारी बनावटी सभ्य होने की भी पोल खुली है।
नकलीपन का मुखौटा लगाए हम काशीवासियों की भी पोल खुल गई है !
हमारे लापरवाही भरे जीवन जीने के तरीके की भी पोल खुल गई है !
हम कितनी ईमानदारी से देश के लिये सोचते हैं उसकी भी पोल खुल गई है!
हम अपने शहर से कितना प्यार करते हैं इसकी भी पोल खुल गई है!
कार और बस से नमकीन चिप्स खाकर कचरा फेंकने वालों की भी पोल खुल गई है!
घर के छत पर प्लास्टिक की थैलियों में कचरा भरकर गलियों में कचरा फेंकने वालों की भी पोल खुल गई!
डोर टू डोर कूड़ा उठाने वालों को महीने में ₹50 न देने वालों की भी पोल खुल गई है!
मोहल्ले के खाली जमीनों पर कचरा फेंकने वालों की भी पोल खुल गई है!
दोस्तों क्या कभी आपके मकान के छत के ऊपर पानी रुका है,पानी इकट्ठा हुआ है?
आप जानते भी होंगे की जिस पाइप और जाली के जरिये बारिश का पानी जाता है उस जाली पर कुछ छोटे-मोटे कचरे, पन्नियां, पत्तियां इकट्ठा हो जाती हैं और जाली का मुंह उपर से बंद हो जाता है और पानी रुक जाता है....
एक मकान में कितने लोग रहते हैं 10-15-20 लोग!
एक शहर में जहां लाखों लोग रहते हैं, और वह भी ऐसे लोग जिन्हें जिनमें से कुछ कुछ छोड़कर बाकी ९९ फ़ीसदी आबादी को कोई मतलब नहीं इस शहर की गलियां, शहर के नाले,सीवर उन्हीं के द्वारा फेंके गए कचरे से चोक हो जा रहा है....
मैं यह नहीं कहता कि सरकारी तंत्र में कमियां नहीं है, लेकिन समस्या आ जाने पर शोर मचाने से क्या समस्या का समाधान मुमकिन है?
समस्या का समाधान तभी मुमकिन है जब हम जीवन को प्रतिदिन जागरूकता के साथ जीयें।
मैंने पिछले 5 सालों में पॉलिथीन को लेकर के तमाम जागरूकता अभियान किए, कपड़े के झोले बनवाकर के लगभग 5000 कपड़े के झोले बांटे।
पिछले डेढ़ सालों से कोरोना काल के कारण अभियान थोड़ा सा धीमा पड़ गया गया है।
दोस्तों हर घटना के दो पहलू होते हैं और सरकारी तंत्र के साथ-साथ वहां उस देश की नागरिक की जिम्मेवारी है कि वह हर समस्या को गंभीरता से लें और सिर्फ सरकार को दोष देकर के, तंत्र को दोष देकर के बचने का काम ना करें ।
यह देश हमारा है, हम सब का है और यह देश ही हमारा मुख्य घर है ।
हमारा व्यक्तिगत घर इस देश की एक बहुत ही छोटी इकाई है,तो दोस्तों सरकार को दोष देने का काम आसान है लेकिन सकारात्मक सहभागिता निभाना बहुत मुश्किल।
खैर ,आखिर में मैं इतना ही कहूंगा कि मेरे इस लेख का मकसद सिर्फ आमजन के बीच में जागरूकता फैलाना है और सरकार व आम नागरिक को अपने-अपने दायित्वों का निर्वहन कराने हेतु प्रेरित करना है।
सत्येंद्र उर्मिला शर्मा
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